संकष्टी चतुर्थी व बैकुंठ चतुर्दशी – व्रत कथा, पूजा विधि और धार्मिक महत्व Sankashti Chaturthi Vaikunth Chaturdashi Puja Vidhi

Sankashti Chaturthi Vaikunth Chaturdashi Puja Vidhi

Sankashti Chaturthi Vaikunth Chaturdashi Puja Vidhi  प्रत्येक पर्व, हर व्रत एक विशेष ऊर्जा लेकर आता है, जो मानव जीवन को पवित्र, संयमित और सकारात्मक बनाती है। इन्हीं पावन तिथियों में दो अत्यंत महत्वपूर्ण दिवस हैं — संकष्टी चतुर्थी और बैकुंठ चतुर्दशी।एक ओर जहाँ संकष्टी चतुर्थी भगवान श्री गणेश को समर्पित है ओर बैकुंठ चतुर्दशी भगवान श्री हरि विष्णु और भगवान शिव दोनों की आराधना का दिन है — जो मोक्ष और परम शांति की प्राप्ति का प्रतीक है।

संकष्टी चतुर्थी बुद्धि, बल और विघ्ननाश की प्रतीक है, वहीं बैकुंठ चतुर्दशी भक्ति, ज्ञान और मोक्ष का द्वार खोलती है।।यह लेख इन्हीं ग्रंथों में दिए गए उल्लेखों, धार्मिक मान्यताओं और ज्योतिषीय दृष्टिकोण के आधार पर संकष्टी चतुर्थी व बैकुंठ चतुर्दशी की सम्पूर्ण जानकारी प्रस्तुत करता है।


संकष्टी चतुर्थी का अर्थ और महिमा

‘संकष्टी’ शब्द का अर्थ है — संकट से मुक्ति देने वाली।
चतुर्थी तिथि हर मास में दो बार आती है —

  • एक कृष्ण पक्ष में, जिसे संकष्टी चतुर्थी कहते हैं।
  • और दूसरी शुक्ल पक्ष में, जिसे विनायक चतुर्थी कहते हैं।

गणेश पुराण में कहा गया है —

“चतुर्थ्यां तु विशेषेण पूज्यो विघ्ननाशकः। संकष्टे चतुर्थ्यां तु यः पूजां कुरुते नरः॥”
अर्थात् — जो व्यक्ति संकष्टी चतुर्थी के दिन विधिपूर्वक श्री गणेश की पूजा करता है, उसके सभी विघ्न और संकट दूर हो जाते हैं।Sankashti Chaturthi Vaikunth Chaturdashi Puja Vidhi


संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा (Ganesh Vrat Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार पार्वती माता स्नान करने के लिए जा रही थीं। उन्होंने अपने शरीर के उबटन से एक बालक का निर्माण किया और उसे द्वार पर पहरा देने के लिए कहा।उसी समय भगवान शिव आए, परंतु बालक ने उन्हें प्रवेश करने से रोक दिया। क्रोध में शिव ने बालक का सिर काट दिया।जब माता पार्वती ने यह देखा तो वे शोकाकुल हुईं। तब देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने बालक के शरीर में हाथी का सिर लगाकर उसे पुनर्जीवित किया और उसे ‘गणेश’ नाम दिया।तब से भगवान गणेश को प्रथम पूज्य माना गया।

इस व्रत की मान्यता है कि जो व्यक्ति संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखकर रात्रि में चंद्रमा दर्शन करता है, उसके जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं और उसे आरोग्य, धन, सुख और सफलता प्राप्त होती है।Sankashti Chaturthi Vaikunth Chaturdashi Puja Vidhi


संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि

  1. प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. गणपति की मूर्ति को लाल वस्त्र पर स्थापित करें।
  3. धूप, दीप, अक्षत, दूर्वा, मोदक और लाल पुष्प अर्पित करें।
  4. “ॐ गण गणपतये नमः” मंत्र का 108 बार जप करें।
  5. गणेश अथर्वशीर्ष या गणेश स्तोत्र का पाठ करें।
  6. रात्रि में चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण करें।

उपवास नियम:
दिनभर फलाहार करके केवल रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर भोजन किया जाता है।Sankashti Chaturthi Vaikunth Chaturdashi Puja Vidhi


बैकुंठ चतुर्दशी का अर्थ और महत्व

बैकुंठ चतुर्दशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है।यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की आराधना के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।स्कंद पुराण में लिखा गया है —“चतुर्दश्यां हि कार्तिक्यां विष्णुश्च शिवपूजितः। यः पूजयेद्द्वयोरेवं तस्य मोक्षः सुगम्यते॥”अर्थात् — कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन जो व्यक्ति भगवान विष्णु और शिव दोनों की पूजा करता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है।Sankashti Chaturthi Vaikunth Chaturdashi Puja Vidhi


Sankashti Chaturthi Vaikunth Chaturdashi Puja Vidhi

बैकुंठ चतुर्दशी से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार काशी नगरी में एक धनापति नामक ब्राह्मण रहता था। वह विष्णु भक्त था परंतु कभी शिव की पूजा नहीं करता था।मृत्यु के पश्चात जब उसके प्राण यमदूत लेने आए, तब भगवान विष्णु ने कहा — “यह मेरा भक्त है, इसे मेरे लोक में स्थान दो।”परंतु शिवदूतों ने विरोध किया। तब भगवान विष्णु स्वयं काशी पहुँचे और भगवान विश्वनाथ से बोले —
“हे महादेव! आज मैं आपका भक्त बनकर आपकी पूजा करूंगा।”
तब शिव बोले — “हे विष्णु, आज से जो मनुष्य कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को तुम्हारी और मेरी संयुक्त पूजा करेगा, उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होगी।”तभी से इस दिन को बैकुंठ चतुर्दशी कहा जाने लगा।Sankashti Chaturthi Vaikunth Chaturdashi Puja Vidhi

READ ALSO:
Dev Diwali 2025: शिववास योग और भद्रावास योग के शुभ संयोग में मनेगी देव दीपावली, धन-समृद्धि की होगी बरसात

बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा विधि

  1. प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके पवित्र वस्त्र धारण करें।
  2. भगवान विष्णु को तुलसीदल, पुष्प और दीप से पूजें।
  3. इसके बाद भगवान शिव को जल, दूध और बेलपत्र से अभिषेक करें।
  4. मंदिर में 14 दीपक जलाने की परंपरा है — ये 14 लोकों का प्रतीक हैं।
  5. दिनभर उपवास रखें और सायंकाल आरती के बाद तुलसी दल से जल अर्पित करें।

संयुक्त पूजन का महत्व

संकष्टी चतुर्थी और बैकुंठ चतुर्दशी, दोनों व्रत जब पास-पास आते हैं, तब उनका योग अत्यंत शुभ फलदायी माना जाता है।
इस संयुक्त उपासना से व्यक्ति को गणेश जी की बुद्धि, विष्णु जी की कृपा और शिव जी की मुक्ति — तीनों की प्राप्ति होती है।पद्म पुराण के अनुसार —“यत्र विष्णुः शिवश्चैव तत्र सर्वं शुभं भवेत्।”अर्थात् — जहाँ विष्णु और शिव दोनों की आराधना की जाती है, वहाँ शुभता और कल्याण अपने आप आ जाता है।Sankashti Chaturthi Vaikunth Chaturdashi Puja Vidhi

READ ALSO :
Kartik Purnima 2025: कब है कार्तिक पूर्णिमा? कार्तिक पूर्णिमा 2025 पर खुलेंगे भाग्य के दरवाज़े! सिर्फ इतना कर लीजिए और माँ लक्ष्मी देंगी अपार धन!”

धार्मिक लाभ और ज्योतिषीय प्रभाव

ज्योतिषीय दृष्टि से:

  1. संकष्टी चतुर्थी चंद्रमा से संबंधित मानसिक शांति और बाधा निवारण का दिन है।
  2. बैकुंठ चतुर्दशी सूर्य और गुरु ग्रह से संबंधित है, जो धर्म, ज्ञान और मोक्ष का प्रतीक है।

 धार्मिक लाभ:

  1. जीवन के सभी संकट दूर होते हैं।
  2. व्यापार, नौकरी और शिक्षा में सफलता मिलती है।
  3. पितृदोष, राहु-केतु दोष से मुक्ति मिलती है।
  4. आत्मशुद्धि और मन की शांति प्राप्त होती है।

व्रत का आध्यात्मिक रहस्य

इन दोनों व्रतों का संदेश है — संकट में संयम और ज्ञान में समर्पण।भगवान गणेश मन के विघ्नों को दूर करते हैं, जबकि भगवान विष्णु आत्मा को मोक्ष मार्ग पर अग्रसर करते हैं।अतः जो व्यक्ति श्रद्धा से इन दोनों तिथियों का पालन करता है, वह सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों ही रूपों में उन्नति प्राप्त करता है।

कहते हैं, यदि कोई व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा से इन दोनों व्रतों का पालन करता है, तो उसके जीवन के सभी संकट मिट जाते हैं, स्वास्थ्य उत्तम होता है और अंततः उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।इसी कारण ये दोनों तिथियाँ कार्तिक मास में आने वाले सबसे शुभ और फलदायी दिनों में गिनी जाती हैं।Sankashti Chaturthi Vaikunth Chaturdashi Puja Vidhi


FAQ – सामान्य प्रश्न

प्रश्न 1: क्या संकष्टी चतुर्थी हर महीने आती है?
उत्तर: हाँ, यह प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को मनाई जाती है।

प्रश्न 2: बैकुंठ चतुर्दशी का विशेष महत्व क्या है?
उत्तर: यह एकमात्र तिथि है जब भगवान विष्णु स्वयं भगवान शिव की पूजा करते हैं।

प्रश्न 3: क्या दोनों व्रत एक साथ किए जा सकते हैं?
उत्तर: हाँ, यदि तिथियाँ समीप हों, तो दोनों व्रतों का संयुक्त पालन करने से अधिक फल प्राप्त होता है।Sankashti Chaturthi Vaikunth Chaturdashi Puja Vidhi


Disclaimer

यह लेख पौराणिक ग्रंथों, स्कंद पुराण, पद्म पुराण और गणेश पुराण में वर्णित कथाओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य धार्मिक और सांस्कृतिक जानकारी प्रदान करना है। पाठक अपनी श्रद्धा और परंपरा के अनुसार व्रत विधि अपनाएँ।

संकष्टी चतुर्थी व्रत, बैकुंठ चतुर्दशी पूजा, संकष्टी चतुर्थी कथा, बैकुंठ चतुर्दशी महात्म्य, गणेश व्रत विधि, विष्णु पूजा, शिव विष्णु संयुक्त आराधना, हिंदू पर्व

#SankashtiChaturthi #VaikunthChaturdashi #GaneshVrat #VishnuPuja #HinduFestivals #PujaVidhi

Free Kundli Generator

Name:

Date of Birth:

Time of Birth:

Place: